Monday 27 August 2012

अक्ल बहादुर : लोक कथा

एक नगर में चार भाई रहते थे| चारों ही अक्ल से अक्लमंद थे| चारों ही भाई अक्ल के मामले में एक से बढ़कर एक | उनकी अक्ल के चर्चे आस-पास के गांवों व नगरों में फैले थे लोग उनकी अक्ल की तारीफ़ करते करते उन्हें अक्ल बहादुर कहने लगे|एक भाई का नाम सौबुद्धि, दूजे का नाम हजार बुद्धि, तीसरे का नाम लाख बुद्धि, तो चौथे भाई का नाम करोड़ बुद्धि था|

एक दिन चारों ने आपस में सलाह की कि -किसी बड़े राज्य की राजधानी में कमाने चलते है| दूसरे बड़े नगर में जाकर अपनी बुद्धि से कमायेंगे तो अपनी बुद्धि की भी परीक्षा होगी और हमें भी पता चलेगा कि हम कितने अक्लमंद है ? फिर वैसे भी घर बैठना तो निठल्लों का काम है चतुर व्यक्ति तो अपनी चतुराई व अक्ल से ही बड़े बड़े शहरों में जाकर धन कमाते है|और इस तरह चारों ने आपस में विचार विमर्श कर किसी बड़े शहर को जाने के लिए घोड़े तैयार कर चल पड़े| काफी रास्ता तय करने के बाद वे चले जा रहे थे कि अचानक उनकी नजर रास्ते में उनसे पहले गए किसी ऊंट के पैरों के निशानों पर पड़ी|

"ये जो पैरों के निशान दिख रहे है वे ऊंट के नहीं ऊँटनी के है |" सौ बुद्धि निशान देख अपने भाइयों से बोला|
"तुमने बिल्कुल सही कहा| ये ऊँटनी के ही पैरों के निशान है और ये ऊँटनी बायीं आँख से कानी भी है |" हजार बुद्धि ने आगे कहा|
लाख बुद्धि बोला- "तुम दोनों सही हो| पर एक बात मैं बताऊँ? इस ऊँटनी पर जो दो लोग सवार है उनमे एक मर्द व दूसरी औरत है|
करोड़ बुद्धि कहने लगा- "तुम तीनों का अंदाजा सही है| और ऊँटनी पर जो औरत सवार है वह गर्भवती है|"

अब चारों भाइयों ने ऊंट के उन पैरों के निशानों व आस-पास की जगह का निरिक्षण कर व देखकर अपनी बुद्धि लगा अंदाजा तो लगा लिया पर यह अंदाजा सही लगा या नहीं इसे जांचने के लिए आपस में चर्चा कर ऊंट के पैरों के पीछे-पीछे अपने घोड़ों को ऐड लगा दौड़ा दिए| ताकि ऊंट सवार का पीछा कर उस तक पहुँच अपनी बुद्धि से लगाये अंदाजे की जाँच कर सके|
थोड़ी ही देर में वे ऊंट सवार के आस-पास पहुँच गए| ऊंट सवार अपना पीछा करते चार घुड़सवार देख घबरा गया कहीं डाकू या बदमाश नहीं हो, सो उसने भी अपने ऊंट को दौड़ा दिया| और ऊंट को दौड़ाता हुआ आगे एक नगर में प्रवेश कर गया| चारों भाई भी उसके पीछे पीछे ही थे| नगर में जाते ही ऊंट सवार ने नगर कोतवाल से शिकायत की - " मेरे पीछे चार घुड़सवार पड़े है कृपया मेरी व मेरी पत्नी की उनसे रक्षा करें|"

पीछे आते चारों भाइयों को नगर कोतवाल ने रोक पूछताछ शुरू कर दी कि कही कोई दस्यु तो नहीं| पूछताछ में चारों भाइयों ने बताया कि वे तो नौकरी तलाशने घर से निकले है यदि इस नगर में कही कोई रोजगार मिल जाए तो यही कर लेंगे| कोतवाल ने चारों के हावभाव व उनका व्यक्तित्व देख सोचा ऐसे व्यक्ति तो अपने राज्य के राजा के काम के हो सकते है सो वह उन चारों भाइयों को राजा के पास ले आया, साथ उनके बारे में जानकारी देते हुए कोतवाल ने उनके द्वारा ऊंट सवार का पीछा करने वाली बात बताई|

राजा ने अपने राज्य में कर्मचारियों की कमी के चलते अच्छे लोगों की भर्ती की जरुरत भी बताई पर साथ ही उनसे उस ऊंट सवार का पीछा करने का कारण भी पुछा|
सबसे पहले सौ बुद्ध बोला-"महाराज ! जैसे हम चारों भाइयों ने उस ऊंट के पैरों के निशान देखे अपनी अपनी अक्ल लगाकर अंदाजा लगाया कि- ये पैर के निशान ऊँटनी के होने चाहिए, ऊँटनी बायीं आँख से कानी होनी चाहिए, ऊँटनी पर दो व्यक्ति सवार जिनमे एक मर्द दूसरी औरत होनी चाहिए और वो सवार स्त्री गर्भवती होनी चाहिए|"
इतना सुनने के बाद तो राजा भी आगे सुनने को बड़ा उत्सुक हुआ| और उसने तुरंत ऊंट सवार को बुलाकर पुछा- "तूं कहाँ से आ रहा था और किसके साथ ?"
ऊंट सवार कहने लगा-" हे अन्नदाता ! मैं तो अपनी गर्भवती घरवाली को लेने अपनी ससुराल गया था वही से उसे लेकर आ रहा था|"
राजा- " अच्छा बता क्या तेरी ऊँटनी बायीं आँख से काणी है?"
ऊंट सवार- "हां ! अन्नदाता| मेरी ऊँटनी बायीं आँख से काणी है|
राजा ने अचंभित होते हुए चारों भाइयों से पुछा- "आपने कैसे अंदाजा लगाया ? विस्तार से सही सही बताएं|" सौ बोद्धि बोला-"उस पैरों के निशान के साथ मूत्र देख उसे व उसकी गंध पहचान मैंने अंदाजा लगाया कि ये ऊंट मादा है|"
हजार बुद्धि बोला-" रास्ते में दाहिनी और जो पेड़ पौधे थे ये ऊँटनी उन्हें खाते हुई चली थी पर बायीं और उसने किसी भी पेड़-पौधे की पत्तियों पर मुंह तक नहीं मारा| इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि जरुर यह बायीं आँख से काणी है इसलिए उसने बायीं और के पेड़-पौधे देखे ही नहीं तो खाती कैसे ?"
लाख बुद्धि बोला- " ये ऊँटनी सवार एक जगह उतरे थे अत: इनके पैरों के निशानों से पता चला कि ये दो जने है और पैरों के निशान भी बता रहे थे कि एक मर्द के है व दूसरे स्त्री के |"
आखिर में करोड़ बुद्धि बोला-" औरत के जो पैरों के निशान थे उनमे एक भारी पड़ा दिखाई दिया तो मैंने सहज ही अनुमान लगा लिया कि हो न हो ये औरत गर्भवती है|"
राजा ने उनकी अक्ल पहचान उन्हें अच्छे वेतन पर अपने दरबार में नौकरी देते हुए फिर पुछा -
"आप लोगों में और क्या क्या गुण व प्रतिभा है ?"
सौ बुद्धि बोला-" मैं जिस जगह को चुनकर तय कर बैठ जाऊं तो किसी द्वारा कैसे भी उठाने की कोशिश करने पर नहीं उठूँ|"
हजार बुद्धि-" मुझमे भोज्य सामग्री को पहचानने की बहुत बढ़िया प्रतिभा है|"
लाख बुद्धि- "मुझे बिस्तरों की बहुत बढ़िया पहचान है|"
करोड़ बुद्धि -"मैं किसी भी रूठे व्यक्ति को चुटकियों में मनाकर ला सकता हूँ|"
राजा ने मन ही मन एक दिन उनकी परीक्षा लेने की सोची|

एक दिन सभी लोग महल में एक जगह एक बहुत बड़ी दरी पर बैठे थे, साथ में चारों अक्ल बहादुर भाई भी| राजा ने हुक्म दिया कि -इस दरी को एक बार उठाकर झाड़ा जाय| दरी उठने लगी तो सभी लोग उठकर दरी से दूर हो गए पर सौ बुद्धि दरी पर ऐसी जगह बैठा था कि वह अपने नीचे से दरी खिसकाकर बिना उठे ही दरी को अलग कर सकता था सो उसने दरी का पल्ला अपने नीचे से खिसकाया और बैठा रहा|राजा समझ गया कि ये उठने वाला नहीं|

शाम को राजा ने भोजन पर चारों भाइयों को आमंत्रित किया| और भोजन करने के बाद चारों भाइयों से भोजन की क्वालिटी के बारे में पुछा|
तीन भाइयों ने भोजन के स्वाद उसकी गुणवत्ता की बहुत सरहना की पर हजार बुद्धि बोला- " माफ़ करें हुजूर ! खाने में चावल में गाय के मूत्र की बदबू थी|"
राजा ने रसोईघर के मुखिया से पुछा -"सच सच बता कि चावल में गौमूत्र की बदबू कैसे ?
रसोई घर का हेड कहने लगा-"गांवों से चावल लाते समय रास्ते में वर्षा आ गयी थी सो भीगने से बचाने को एक पशुपालक के बाड़े में गाडियां खड़ी करवाई थी, वहीँ चावल पर एक गाय ने मूत्र कर दिया था| हुजूर मैंने चावल को बहुत धुलवाया भी पर कहीं से थोड़ी बदबू रह ही गयी |"

हजार बुद्धि की भोजन पारखी प्रतिभा से राजा बहुत खुश हुआ और रात्री को सोते समय चारों भाइयों के लिए गद्दे राजमहल से भिजवा दिए| जिन पर चारों भाइयों ने रात्री विश्राम किया|
सुबह राजा के आते ही लाख बुद्धि ने कहा - "बिस्तर में खरगोस की पुंछ है जो रातभर मेरे शरीर में चुभती रही|"
राजा ने बिस्तर फड़वाकर जांच करवाई तो उसने वाकई खरगोश की पुंछ निकली|राजा लाख बुद्धि के कौशल से भी बड़ा प्रभावित हुआ|

पर अभी करोड़ बुद्धि की परीक्षा बाक़ी थी| सो राजा ने रानी को बुलाकर कहा- "करोड़ बुद्धि की परीक्षा लेनी है आप रूठकर शहर से बाहर बगीचे में जाकर बैठ जाएं करोड़ बुद्धि आपको मनाने आयेगा पर किसीभी सूरत में मानियेगा मत|"
और रानी रूठकर बाग में जा बैठी| राजा ने करोड़ बुद्धि को बुला रानी को मनाने के लिए कहा|
करोड़ बुद्धि बाजार गया वहां से पडले का सामान (शादी में वर पक्ष की ओर से वधु के लिए ले जाने वाला सामान) व दुल्हे के लिए लगायी जाने वाली हल्दी व अन्य शादी का सामान ख़रीदा और बाग के पास से गुजरा वहां रानी को देखकर उससे मिलने गया|
रानी ने पुछा-"ये शादी का सामान कहाँ ले जा रहे है|"
करोड़ बुद्धि बोला-" आज राजा जी दूसरा ब्याह रचा रहे है यह सामान उसी के लिए है| राजमहल ले कर जा रहा हूँ|
रानी ने पुछा-" क्या सच में राजा दूसरी शादी कर रहे है ?"
करोड़ बुद्धि- " सही में ऐसा ही हो रहा है तभी तो आपको राजमहल से दूर बाग में भेज दिया गया है|"
इतना सुन राणी घबरा गयी कि कहीं वास्तव में ऐसा ही ना हो रहा हो| और वह तुरंत अपना रथ तैयार करवा करोड़ बुद्धि के आगे आगे महल की ओर चल दी|
महल में पहुँच करोड़ बुद्धि ने राजा कोप अभिवादन कर कहा-" महाराज ! राणी को मना लाया हूँ|"
राजा ने देखा रानी सीधे रथ से उतर गुस्से में भरी उसकी और ही आ रही थी| और आते ही राजा से लड़ने लगी कि- "आप तो मुझे धोखा दे रहे थे| पर मेरे जीते जी आप दूसरा ब्याह नहीं कर सकते|
"

राजा भी राणी को अपनी सफाई देने में लग गया|
और इस तरह चारों अक्ल बहादुर भाई राजा की परीक्षा में सफल रहे |



नोट : यह कहानी मैंने राजस्थानी भाषा की मूर्धन्य साहित्यकार लक्ष्मीकुमारी चूंडावत की पुस्तक "कैरे चकवा बात" में पढ़ी थी जो राजस्थानी भाषा में लिखी गयी है|

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