Saturday 7 September 2013

सारन

ठाकुर देशराज लिखते हैं

ठाकुर देशराज लिखते हैं कि भाट-ग्रन्थों में राव सारन नाम के भाटी और औलाद में हुए लोगों का नाम सारन है। भाट लोग कहते हैं कि सारन ने जाटनी से शादी कर ली थी। इससे उनके वंशज सार कहलाए, यह कथा नितान्त झूठी गढन्त है, जिनका हमने पिछले पृष्ठों में काफी खंडन कर दिया है। सारन वंशीय जाट-क्षत्रिय हैं। सारन व उनके पूर्वज जाट थे। वे उस समय से जाट थे, जिस समय कि लोग यह भी नहीं जानते थे कि राजपूत भी कोई जाति है। जांगल-प्रदेश में उनके अधिकार में 300 से ऊपर नगर और गांव थे। रामरत्न चारण ने उनके अधिकृत गांवों की संख्या 460 बताई है। उनकी राजधानी भाडंग में थी। खेजड़ा, फोगा, बूचावास, सूई, बदनु और सिरसला उनके अधिकृत प्रदेश के प्रसिद्ध नगर थे। राठौरों से उनके जिस राजा का युद्ध हुआ था, उसका नाम पूलाजी था। प्रजा इनकी धन-धान्य से पूरित थी। राज्य में पैदा होने वाली किसी चीज पर टैक्स न था। वहां जो चीजें आती थीं, उन पर भी कोई महसूल न था। कहा जाता है कि जांगल-देश के ब्राह्मण घी, ऊन का व्यापार किया करते थे। राज्य में जितनी भी जातियों के प्रजा-जन थे, सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाता था। सारन शांति-प्रिय थे। उनकी प्रवृत्ति थी, ‘स्वंय जियो और दूसरों को जीने दो’। रामरत्न चारण ने अपने लिखे इतिहास में बताया है कि गोदारों जाटों का सरदार पांडु सारणों के अधीश्वर की स्त्री को भगा ले गया, इस कारण जांगल-प्रदेश के सभी जाट-राज्य गोदारों के विरुद्ध हो गए। कहना होगा कि जाटों के लगभग तीन हजार गांवों की सल्तनत को कुल्हाड़ी के
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-619
बेंट गोदारा पांडु ने नष्ट करा दिया। पांडु यदि राठौरों के हाथ अपनी स्वाधीनता को न बेच देता, तो राठौरों पर इतनी आपत्ति आती कि फिर बेचारे जांगल-प्रदेश की ओर आने की हिम्मत तक न करते। गोदारों की शक्ति अन्य समस्त जाट-राज्यों की शक्ति के बराबर थी। यह नहीं कहा जा सकता कि जांगल-प्रदेश के जाटों को राठौरों ने जीता। जाटों के सर्वनाश का कारण उनकी पारस्पारिक फूट थी। उसी फूट का शिकार सारन जाट हो गए। उनका प्रदेश युद्धों के समय उजाड़ दिया गया और वे पराजित कर दिए गये, किन्तु शांति-प्रिय सारनों ने जो वीरता अपने राज्य की रक्षा के लिए दिखाई थी, वृद्ध सारन जाट उसे बड़े गर्व के साथ अपनी सन्तान को सुनाता है।
भाड़ंग के सारण

भाड़ंग चुरू जिले की तारानगर तहसील में चुरू से लगभग 40 मील उत्तर में बसा था. पृथ्वीराज चौहान के बाद अर्थार्त चौहान शक्ति के पतन के बाद भाड़ंग पर किसी समय जाटों का आधिपत्य स्थापित हो गया था. जो 16 वीं शताब्दी में राठोडों के इस भू-भाग में आने तक बना रहा. पहले यहाँ सोहुआ जाटों का अधिकार था और बाद में सारण जाटों ने छीन लिया. जब 16 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में राठोड इस एरिया में आए, उस समय पूला सारण यहाँ का शासक था और उसके अधीन 360 गाँव थे. इसी ने अपने नाम पर पूलासर (तहसील सरदारशहर) बसाया था जिसे बाद में सारण जाटों के पुरोहित पारीक ब्राह्मणों को दे दिया गया. पूला की पत्नी का नाम मलकी था, जिसको लेकर बाद में गोदारा व सारणों के बीच युद्ध हुआ. [14] मलकी के नाम पर ही बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील में मलकीसर गाँव बसाया गया था.[15] सारणों में जबरा सारण और जोखा सारण बड़े बहादुर थे. उनकी कई सौ घोड़ों पर जीन पड़ती थी. उन्हीं के नाम पर जबरासर और जोखासर गाँव अब भी आबाद हैं, मन्धरापुरा में मित्रता के बहाने राठोडों द्वारा उन्हें बुलाकर भोज दिया गया और उस स्थान पर बैठाने गए जहाँ पर जमीन में पहले से बारूद दबा रखी थी. उनके बैठ जाने पर बारूद आग लगवा कर उन्हें उड़ा दिया गया.

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