Thursday, 5 September 2013

नदियाँ

राजस्थान की नदियां


चम्बल नदी -  

इस नदी का प्राचीन नाम चर्मावती है। कुछ स्थानों पर इसे कामधेनु भी कहा जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश के मऊ के दक्षिण में मानपुर के समीप जनापाव पहाड़ी (६१६ मीटर ऊँची) के विन्ध्यन कगारों के उत्तरी पार्श्व से निकलती है। अपने उदगम् स्थल से ३२५ किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर एक लंबे संकीर्ण मार्ग से तीव्रगति से प्रवाहित होती हुई चौरासीगढ़ के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है। यहां से कोटा तक लगभग ११३ किलोमीटर की दूरी एक गार्ज से बहकर तय करती है। चंबल नदी पर भैंस रोड़गढ़ के पास प्रख्यात चूलिया प्रपात है। यह नदी राजस्थान के कोटा, बून्दी, सवाई माधोपुर व धौलपुर जिलों में बहती हुई उत्तर-प्रदेश के इटावा जिले मुरादगंज स्थान में यमुना में मिल जाती है। यह राजस्थान की एक मात्र ऐसी नदी है जो सालोंभर बहती है। इस नदी पर गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज बांध बने हैं। ये बाँध सिंचाई तथा विद्युत ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। चम्बल की प्रमुख सहायक नदियों में काली, सिन्ध, पार्वती, बनास, कुराई तथा बामनी है। इस नदी की कुल लंबाई ९६५ किलोमीटर है। यह राजस्थान में कुल ३७६ किलोमीटर तक बहती है। 



काली सिंध - 

यह चंबल की सहायक नदी है। इस नदी का उदगम् स्थल मध्य प्रदेश में देवास के निकट बागली गाँव है। कुध दूर मध्य प्रदेश में बहने के बाद यह राजस्थान के झालावाड़ और कोटा जिलों में बहती है। अंत में यह नोनेरा (बरण) गांव के पास चंबल नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई २७८ किलोमीटर है। 


बनास नदी - 

बनास एक मात्र ऐसी नदी है जो संपूर्ण चक्र राजस्थान में ही पूरा करती है। बनअआस अर्थात बनास अर्थात (वन की आशा) के रुप में जानी जाने वाली यह नदी उदयपुर जिले के अरावली पर्वत श्रेणियों में कुंभलगढ़ के पास खमनौर की पहाड़ियों से निकलती है। यह नाथद्वारा, कंकरोली, राजसमंद और भीलवाड़ा जिले में बहती हुई टौंक, सवाई माधोपुर के पश्चात रामेश्वरम के नजदीक (सवाई माधोपुर) चंबल में गिर जाती है। इसकी लंबाई लगभग ४८० किलोमीटर है। इसकी सहायक नदियों में बेडच, कोठरी, मांसी, खारी, मुरेल व धुन्ध है। (बेडच नदी १९० किलोमीटर लंबी है तथा गोगंडा पहाड़ियों (उदयपुर से निकलती है। कोठारी नदी उत्तरी राजसामंद जिले के दिवेर पहाड़ियों से निकलती है। यह १४५ किलोमीटर लंबी है तथा यह उदयपुर, भीलवाड़ा में बहती हुई बनास में मिल जाती है।(iii) खारी नदी ८० किलोमीटर लंबी है तथा राजसमंद के बिजराल की पहाड़ियों से निकलकर देवली (टौंक के नजदीक बनास में मिल जाती है। 



बाणगंगा - 
इस नदी का उदगम् स्थल जयपुर की वैराठ की पहाड़ियों से है। इसकी कुल लंबाई ३८० किलोमीटर है तथा यह सवाई माधोपुर, भरतपुर में बहती हुई अंत में फतेहा बाद (आगरा) के समीप यमुना में मिल जाती है। इस नदी पर रामगढ़ के पास एक बांध बनाकर जयपुर को पेय जल की आपूर्ति की जाती है। 


पार्वती नदी - 

यह चंबल की एक सहायक नदी है। इसका उदगम् स्थल मध्य प्रदेश के विंध्यन श्रेणी के पर्वतों से है तथा यह उत्तरी ढाल से बहती है। यह नदी करया हट (कोटा स्थान के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है और बून्दी जिले में बहती हुई चंबल में गिर जाती है। 



गंभीरी नदी - 

११० किलोमीटर लंबी यह नदी सवाई माधोपुर की पहाड़ियों से निकलकर करौली से बहती हुई भरतपुर से आगरा जिले में यमुना में गिर जाती है। 


लूनी नदी - 

यह नदी अजमेर के नाग पहाड़-पहाड़ियों से निकलकर नागौर की ओर बहती है। यह जोधपुर, बाड़मेर और जालौर में बहती हुई यह गुजरात में प्रवेश करती है। अंत में कच्छ की खाड़ी में गिर जाती है। लूनी नदी की कुल लंबाई ३२० किलोमीटर है। यह पूर्णत: मौसमी नदी है। बलोतरा तक इसका जल मीठा रहता है लेकिन आगे जाकर यह खारा होता जाता है। इस नदी में अरावली श्रृंखला के पश्चिमी ढाल से कई छोटी-छोटी जल धाराएँ, जैसे लालरी, गुहिया, बांड़ी, सुकरी जबाई, जोजरी और सागाई निकलकर लूनी नदी में मिल जाती है। इस नदी पर बिलाड़ा के निकट का बाँध सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण है। 


मादी नदी - 
यह दक्षिण राजस्थान मुख्यत: बांसबाड़ा और डूंगरपुर जिले की मुख्य नदी है। यह मध्य प्रदेश के धार जिले में विंध्यांचल पर्वत के अममाऊ स्थान से निकलती है। उदगम् से उत्तर की ओर बहने के पश्चात् खाछू गांव (बांसबाड़ा) के निकट दक्षिणी राजस्थान में प्रवेश करती है। बांसबाड़ा और डूंगरपूर में बहती हुई यह नदी गुजरात में प्रवेश करती है। कुल ५७६ किलोमीटर बहने के पश्चात् यह खम्भात की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में सोम, जाखम, अनास, चाप और मोरन है। इस नदी पर बांसबाड़ा जिले में माही बजाज सागर बांध बनाया गया है। 


धग्धर नदी - 

यह गंगानगर जिले की प्रमुख नदी है। यह नदी हिमालय पर्वत की शिवालिक श्रेणियों से शिमला के समीप कालका के पास से निकलती है। यह अंबाला, पटियाला और हिसार जिलों में बहती हुई राजस्थान के गंगानगर जिले में टिब्वी के समीप उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवेश करती है। पूर्व में यह बीकानेर राज्य में बहती थी लेकिन अब यह हनुमानगढ़ के पश्चिम में लगभग ३ किलोमीटर दूर तक बहती है।
हनुमानगढ़ के पास भटनेर के मरुस्थलीय भाग में बहती हुई विलीन हो जाती है। इस नदी की कुल लंबाई ४६५ किलोमीटर है। इस नदी को प्राचीन सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। 


काकनी नदी - 

इस नदी को काकनेय तथा मसूरदी नाम से भी बुलाते है। यह नदी जैसलमेर से लगभग २७ किलोमीटर दूर दक्षिण में कोटरी गाँव से निकलती है। यह कुछ किलोमीटर प्रवाहित होने के उपरांत लुप्त हो जाती है। वर्षा अधिक होने पर यह काफी दूर तक बहती है। इसका पानी अंत में भुज झील में गिर जाता है। 




सोम नदी - 

उदयपुर जिले के बीछा मेड़ा स्थान से यह नदी निकलती है। प्रारंभ में यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती हुई डूंगरपूर की सीमा के साथ-साथ पूर्व में बहती हुई बेपेश्वर के निकट माही नदी से मिल जाती है। 



जोखम नदी 


यह नदी सादड़ी के निकट से निकलती है। प्रतापगढ़ जिले में बहती हुई उदयपुर के धारियाबाद तहसील में प्रवेश करती है और सोम नदी से मिल जाती है। 




साबरमती - 

यह गुजरात की मुख्य नदी है परंतु यह २९ किलोमीटर राजस्थान के उदयपुर जिले में बहती है। यह नदी पड़रारा, कुंभलगढ़ के निकट से निकलकर दक्षिण की ओर बहती है। इस नदी की कुल लंबाई ३१७ किलोमीटर है।


काटली नदी - 

सीकर जिले के खंडेला पहाड़ियों से यह नदी निकलती है। यह मौसमी नदी है और तोरावाटी उच्च भूमि पर यह प्रवाहित होती है। यह उत्तर में सींकर व झुंझुनू में लगभग १०० किलोमीटर बहने के उपरांत चुरु जिले की सीमा के निकट अदृश्य हो जाती है।


साबी नदी -

यह नदी जयपुर जिले के सेवर पहाड़ियों से निकलकर मानसू, बहरोड़, किशनगढ़, मंडावर व तिजारा तहसीलों में बहने के बाद गुडगाँव (हरियाणा) जिले के कुछ दूर प्रवाहित होने के बाद पटौदी के उत्तर में भूमिगत हो जाती है।


मन्था नदी -

यह जयपुर जिले में मनोहरपुर के निकट से निकलकर अंत में सांभर झील में जा मिलती है।

जिलानुसार राजस्थान की नदियां 

१) अजमेर - साबरमती, सरस्वती, खारी, ड़ाई, बनास 
२) अलवर - साबी, रुपाढेल, काली, गौरी, सोटा 
३) बाँसबाड़ा - माही, अन्नास, चैणी 
४) बाड़मेर - लूनी, सूंकड़ी 
५) भरतपुर - चम्बल, बराह, बाणगंगा, गंभीरी, पार्वती 
६) भीलवाडा - बनास, कोठारी, बेडच, मेनाली, मानसी, खारी 
७) बीकानेर - कोई नदी नही 
८) बूंदी – कुराल 
९) चुरु - कोई नदी नही 
१0) धौलपुर – चंबल 
११) डूंगरपुर - सोम, माही, सोनी 
१2) श्रीगंगानगर – धग्धर 
१३) जयपुर - बाणगंगा, बांड़ी, ढूंढ, मोरेल, साबी, सोटा, डाई, सखा, मासी
१४) जैसलमेर - काकनेय, चांघण, लाठी, धऊआ, धोगड़ी 
१५) जालौर - लूनी, बांड़ी, जवाई, सूकड़ी 
१६) झालावाड़ - काली सिन्ध, पर्वती, छौटी काली सिंध, निवाज 
१७) झुंझुनू - काटली
१८) जोधपुर - लूनी, माठड़ी, जोजरी 
१९) कोटा - चम्बल, काली सिंध, पार्वती, आऊ निवाज, परवन 
२०) नागौर – लूनी 
२१) पाली - लीलड़ी, बांडी, सूकड़ी जवाई 
२२) सवाई माधोपुर - चंबल, बनास, मोरेल 
२३) सीकर - काटली, मन्था, पावटा, कावंट 
२४) सिरोही - प. बनास, सूकड़ी, पोसालिया, खाती, किशनावती, झूला, सुरवटा 
२५) टोंक - बनास, मासी, बांडी 
२६) उदयपुर - बनास, बेडच, बाकल, सोम, जाखम, साबरमती 
२७) चित्तौडगढ़ - वनास, बेडच, बामणी, बागली, बागन, औराई, गंभीरी, सीवान, जाखम, माही।




अपवाहतन्त्र अर्थात् नदियाँ


अपवाह तन्त्र से तात्पर्य नदियाँ एवं उनकी सहायक नदियों से है जो एक तन्त्र अथवा प्रारूप का निर्माण करती हैं। राजस्थान में वर्श भर बहने वाली नदी केवल चम्बल है। राजस्थान के अपवाह तन्त्र को अरावली पर्वत श्रेणियाँ निर्धारित करती है। अरावली पर्वत श्रेणियाँ राजस्थान में एक जल विभाजक है और राज्य मे बहने वाली नदियों को दो भागों में विभक्त करती है। इसके अतरिक्त राज्य में अन्तः प्रवाहित नदियाँ भी हैं। इसी आधार पर राजस्थान की नदियों को निम्नलिखित तीन समूहों में विभक्त किया जाता हैः


1. बंगाल की खाडी में गिरने वाली नदियाँ

2. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
3. अन्तः प्रवाहित नदिया

1. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ


इसके अन्तर्गत चम्बल, बनास, बाणगंगा और इनकी सहायक नदियाँ सम्मलित हैं।


चम्बल नदी- इसको प्राचीन काल में चर्मण्यवती के नाम से जाना जाता था। चम्बल नदी का उद्भव मध्य प्रदेश में महू के निकट मानपुर के समीप जनापाव पहाड़ी से हुआ। यह राजस्थान में चौरासीगढ़ (चित्तौड़गढ़ जिला) के निकट प्रवेश कर कोटा-बूंदी जिलों की सीमा बनाती हुई सवाई माधोपुर, करौली तथा धौलपुर जिलों से होते हुए अन्त में यमुना नदी में मिल जाती है। चम्बल नदी पर गाँधी सागर, जवाहर सागर, राणा प्रताप सागर बाँध तथा कोटा बैराज बनाये गये हैं। चम्बल की प्रमुख सहायक नदियाँ बनास, कालीसिंध और पार्वती हैं।


बनास नदी- बनास नदी अरावली की खमनोर पहाड़ियों से निकलती है जो कुम्भलगढ़ से 5 किमी. दूर है। यह कुम्भलगढ़ से दक्षिण की ओर गोगुन्दा के पठार से प्रवाहित होती हुई नाथद्वारा, राजसंमद, रेल मगरा पार कर चित्तौड़गढ़,भीलवाड़ा, टोंक जिले से होती हुई सवाई माधापुर में चम्बल से मिल जाती है। बनास नदी का ‘वन की आशा’ भी कहा जाता है। इसकी प्रमुख सहायक नदिया है: बेडच, कोठारी, खारी, मैनाल, बाण्डी, धुन्ध और मोरेल।


काली सिन्ध नदी- यह मध्य प्रदेश में दवास के निकट से निकल कर झालावाड़ और बारा जिले में बहती हुई नानेरा के निकट चम्बल नदीं में मिलती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ परवन, उजाड़, निवाज और आहू  हैं।


पार्वती नदी- मध्य प्रदेश के सिहार क्षेत्र से निकलकर बंारा जिले में बहती हुई सवाईमाधापुर जिले में पालिया के निकट चम्बल में मिल जाती है।


वापनी (बाह्यणी) नदी - चित्तौड़गढ़ जिले में हरिपुर गाँव के निकट से निकलकर भैसराड़गढ़ के निकट चम्बल मे मिलती है।


मेज नदी - भीलवाड़ा जिले से निकलकर बंदी में लाखेरी के निकट चम्बल में मिलती है।


बाणगंगा नदी - इसका उद्गम जयपुर जिले की बैराठ पहाड़ियों से है। यहाँ से यह पर्व की आर सवाई माधापुर जिले और इसके पश्चात् भरतपुर जिले में प्रवाहित होती है, जहाँ इसका जल फैल जाता है।


2. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ


राजस्थान में प्रवाहित हाती हुई अरब सागर में गिरन वाली नदियाँ है- लूनी, माही और साबरमती ।


लूनी नदी- लनी नदी का उद्गम अजमेर का नाग पहाड़ है, तत्पश्चात यह जोधपुर, पाली, बाड़मेंर, जालौर के क्षेत्रौं में लगभग 320 कि.मी. प्रवाहित हाती हुई अन्त में कच्छ के रन में चली जाती है। यह केवल वर्षा काल में प्रवाहित होती है। लनी नदी की यह विशशता है कि इसका पानी बालोतरा तक मीठा है उसके पश्चात् खारा हो जाता है। लूनी नदी की सहायक नदियाँ है- जवाई, लीलड़ी, मीठड़ी, सूखड़ी- प्रथम, द्वितीय एव तृतीय, बाड़ी- प्रथम एव द्वितीय  तथा सागी।


माही नदी- माही नदी मध्य प्रदश के मह की पहाड़ियों से निकलकर राजस्थान में बाँसवाड़ा जिले में प्रवेश करती है तथा डूँगरपुर-बाँसवाड़ा जिले की सीमा बनाते हुए गुजरात में प्रवेश कर अन्त में खम्बात की खाडी में गिर जाती है। बाँसवाड़ा के निकट इस पर ‘माही-बजाज सागर’ बाँध बनाया गया है। इसकी प्रमुख सहायक नदिया सोम, जाखम, अनास, चाप और मोरेन है।


साबरमती नदी- उदयपुर के दक्षिण-पश्चिम’ से निकलकर उदयपुर और सिरोही जिलां में प्रवाहित होकर गुजरात में प्रवेश कर खम्भात की खाड़ी में गिरती है। प्रारम्भ में यह वाकल नदी के नाम से जानी जाती है।


3. अंतः प्रवाहित नदियाँ

राजस्थान में अनेक छाटी नदियाँ इस प्रकार की हैं, जो कुछ दूरी तक बहकर रत अथवा भूमि में विलीन हा जाती हैं,इन्हीं का अंतः प्रवाहित नदियाँ कहते हैं। इस प्रकार की प्रमुख नदियाँ कातली, साबी तथा काकानी हैं। कातली नदी- सीकर जिले की खण्डेला की पहाड़ियों से निकलती है। इसके पश्चात 100 किमी. दूरी तक सीकर, झुन्झुनू जिलों में बहती हुई रतीली भमि में विलुप्त हो जाती है।

साबी नदी- जयपुर की सेवर की पहाडियां से निकलकर बानासूर, बहराड, किशनगढ़, मण्डावर एव तिजारा तहसीलों में बहती हुई हरियाणा में जाकर विलुप्त हो जाती है। काकानी अथवा काकनेय नदी- जैसलमेर से लगभग 27 किमी. दक्षिण में काटरी गाँव से निकलकर कुछ किलोमीटर बहने के पश्चात् विलुप्त हो जाती है।


घग्घर नदी- यह एक विशिश्ट नदी है जिसे प्राचीन  सरस्वती नदी का अवशश माना जाता है। यह हरियाणा से निकलकर हनुमानगढ, गंगानगर सूरतगढ़, अनपगढ़ से होते हुए उसका जल पाकिस्तान में चला जाता है। इसमें वर्शाकाल में जल आता है जा सर्वत्र फैल जाता है। इस नदी का मृत नदी कहत हैं। वर्तमान में इस नदी के तल का स्थानीय भाशा में‘नाली’ कहत हैं।


उक्त अंतः प्रवाहित नदियों के अतिरिक्त बाणगंगा और सांभर झील क्षेत्र की नदियाँ आन्तरिक प्रवाहित श्रेणी की हैं।




शेखावाटी की भागीरथी - काटली नदी  

गजेन्द्र सिंह शेखावत

काटली नदी राजस्थान के सीकर ज़िले के खंडेला की पहाड़ियों से निकलती है। यह एक मौसमी नदी है और तोरावाटी उच्च भूमि पर प्रवाहित होती है। नदी उत्तर में सीकर व झुंझुनू में लगभग 100 किलोमीटर बहने के उपरांत चुरू ज़िले की सीमा के निकट अदृश्य हो जाती है।

विगत १७-१८ सालों में जिस प्रकार से बारिश का पैमाना साल दर साल कम होता गया है। वर्षा से पूरित जल श्रोत धीरे - धीरे सूखने लग गए। हर साल बारिश तो होती है, परन्तु कुछ समय में रुक जाती है। जिससे धरती की गहराईयों में स्तिथ जल शिराओं तक जलराशी नहीं पहुँच पाती है| परिणाम स्वरुप भूमि के द्वारा उस जल का तुरंत अवशोषण कर लिया जाता है व् वाष्प बनकर उड़ जाता है।


शेखावाटी क्षेत्र की परमुख बरसाती नदी काटली इस क्षेत्र की भागीरथी है। अरावली पर्वत श्रंखलाओं की गोद से जन्म लेने के बाद विभिन्न गांवों से निकली नालियों, छोटे छोटे नालों व पठारों से निकली जल की कुपिकाओं को अपने आप में समाहित करती हुई आगे बढती है। किसी समय में यह पुरे वेग के साथ उफनती हुई घुमावदार बलखाती हुई बहती थी। लगभग आधा किलोमीटर चौड़ाई का क्षेत्र इसके आगोश में होता था। अपने चिरपरिचित मार्ग से यह जब निकलती थी तो तटवर्ती गांवों का आवागमन अवरुद्ध हो जाता था। सीमावर्ती गाँवों का संपर्क टूट जाता था। कुछ सधे हुई तैराक नदी के तट पर सहायता के लिए उपलब्द रहते थे। 


गांवों का जनसमूह तटों पर मानो इसके स्वागत के लिए जमा हो जाया करते था। उस दौरान इस क्षेत्र का मिठा पानी का स्तर स्वतः ही बढ़ जाया करता था ।तैराकी के शौकीनों के लिए इसके बहाव के ख़त्म हो जाने के बाद बने छोटे -छोटे तालाब तैराकी सिखने का जरिया होते थे। जहाँ वो अपनी जिजीविषा को शांत करते थे।


इस नदी के शबाब पर होने के दौरान आवागमन पूरी तरह से ठहर जाता था। कई -कई बार तो २-३ दिन तक पानी का वेग नहीं रुकता था। ऐसे में कॉपर प्रोजेक्ट के द्वारा ३५ -४० साल पहले चंवरा-कैंप के पास दोनों मुहानों को जोड़ने के लिए रपटे(सीमेंट की रोड ) का निर्माण करवाया गया। ये रपटा मजबूत कंकरीट पत्थर लोहे व् सीमेंट के योग से बना है। जिससे यह आज भी पत्थर की मानिंद वैसे ही डटा हुआ है।


परन्तु अब न तो वह बारिश की झड़ी लगती है और न ही ये नदी मचलती हुई आती है। इन १७-१८ सालों में जन्म लेने वालों के लिए तो यह मात्र काल्पनिक कहानी बनकर रह गयी है। आज सुदूर तक इस नदी के पाट व् बीच के क्षेत्र में कुचे व् आक के पौधे खड़े हुए निरंतर इसके आगमन के लिए प्रतीक्षारत है। वहीँ दूसरी और मनुष्यों ने नदी के बहाव क्षेत्र में आवासीय निर्माण कार्य कर के इसके भविष्य में नहीं आने के प्रति पूरी तरह से आस्वश्थता जता दी है ।कई जगह छोटे छोटे बांध भी बना दिए गए है। काटली नदी के बहाव क्षेत्र में गुहाला (झुंझुनू) के समीप चिनाई में प्रयुक्त होने वाली उत्तम किस्म की बजरी (रेत) होती है ।जहाँ से सुदूर स्थानों पर इसका परिवहन होता है ।


क्या फिर से काटली नदी कभी आ पायेगी ? इसका उत्तर प्रकृति के स्वरुप में छिपा हुआ है । 

उसने छोड़ दिया आना -जाना 
मानों कह रही हो मानव से 
तूनें अच्छा सिला दिया मेरे दुलार का 
तुमने हमेशा देखा अपना हित
और की मेरी अनदेखी
बस अब बहुत हो चूका
अब और नहीं सह पाऊँगी 

पहले वह थमी

फिर कुम्हलाई एक बेल की तरह
फिर बन गई सूखती हुई लकीर
और आज रह गयी दूर- दूर तक सिर्फ रेत  


No comments:

Post a Comment