Friday, 6 September 2013

राजस्थान की होली


राजस्थान की होली

राजस्थान की होली
राजस्थान के विभिन्न इलाकों में होली मनाने का अलग और खास अंदाज है। होली के मौके पर जानिए राज्य की होली से जुडी अनूठी परंपराओं के बारे में।
लट्ठमार होली


भरतपुर के ब्रजांचल में फाल्गुन का आगमन कोई साधारण बात नहीं है। यहां की वनिताएं इसके आते ही गा उठतीं हैं "सखी री भागन ते फागुन आयौ, मैं तो खेलूंगी श्याम संग फाग।" ब्रज के लोकगायन के लिए कवि ने कहा है "कंकड" हूं जहां कांकुरी है रहे, संकर हूं कि लगै जहं तारी, झूठे लगे जहं वेद-पुराण और मीठे लगे रसिया रसगारी।" यह रसिया ब्रज की धरोहर है, जिनमें नायक ब्रजराज कृष्ण और नायिका ब्रजेश्वरी राधा को लेकर ह्वदय के अंतरतम की भावना और उसके तार छेडे जाते हैं। गांव की चौपालों पर ब्रजवासी ग्रामीण अपने लोकवाद्य "बम" के साथ अपने ढप, ढोल और झांझ बजाते हुए रसिया गाते हैं। डीग क्षेत्र ब्रज का ह्वदय है, यहां की ग्रामीण महिलाएं अपने सिर पर भारी भरकम चरकुला रखकर उस पर जलते दीपकों के साथ नृत्य करती हैं। संपूर्ण ब्रज में इस तरह आनंद की अमृत वर्षा होती है। यह परंपरा ब्रज की धरोहर है। रियासती जमाने में भरतपुर के ब्रज अनुरागी राजाओं ने यहां सर्वसाधारण जनता के सामने स्वांगों की परंपरा को संरक्षण दिया। दामोदर जैसे गायकों के रसिक आज भी भरतपुर के लोगों की जबान पर हैं जिनमें शृंगार के साथ ही अध्यात्म की धारा बहती थी। बरसाने, नंदगांव, कामां, डीग आदि स्थानों पर ब्रज की लट्ठमार होली की परंपरा आज भी यहां की संस्कृति को पुष्ट करती है। चैत्र कृष्ण द्वितीया को दाऊजी का हुरंगा भी प्रसिद्ध है।
गेर नृत्य
पाली के ग्रामीण इलाकों में फाल्गुन लगते ही गेर नृत्य शुरू हो जाता है। वहीं यह नृत्य डंका पंचमी से भी शुरू होता है। फाल्गुन के पूरे महीने रात में चौहटों पर ढोल और चंग की थाप पर गेर नृत्य किया जाता है। मारवाड गोडवाड इलाके में डांडी गैर नृत्य बहुत होता है और यह नृत्य इस इलाके में खासा लोकप्रिय है। यहां फाग गीत के साथ गालियां भी गाई जाती हैं।


मुर्दे की सवारी
मेवाड अंचल के भीलवाडा जिले के बरून्दनी गांव में होली के सात दिन बाद शीतला सप्तमी पर खेली जाने वाली लट्ठमार होली का अपना एक अलग ही मजा रहा है। माहेश्वरी समाज के स्त्री-पुरूष यह होली खेलते हैं। डोलचियों में पानी भरकर पुरूष महिलाओं पर डालते हैं और महिलाएं लाठियों से उन्हें पीटती हैं। पिछले पांच साल से यह परंपरा कम ही देखने को मिलती है। यहां होली के बाद बादशाह की सवारी निकाली जाती है, वहीं शीतला सप्तमी पर चित्तौडगढ वालों की हवेली से मुर्दे की सवारी निकाली जाती है। इसमें लकडी की सीढी बनाई जाती है और जिंदा व्यक्ति को उस पर लिटाकर अर्थी पूरे बाजार में निकालते हैं। इस दौरान युवा इस अर्थी को लेकर पूरे शहर में घूमते हैं। लोग इन्हें रंगों से नहला देते हैं।


चंग-गींदड
फाल्गुन शुरू होते ही शेखावाटी में होली का हुडदंग शुरू हो जाता है। हर मोहल्ले में चंग पार्टी होती है। होली के एक पखवाडे पहले गींदड शुरू हो जाता है। जगह- जगह भांग घुटती है। हालांकि अब ये नजारे कम ही देखने को मिलते हैं। जबकि, शेखावाटी में ढूंढ का चलन अभी है। परिवार में बच्चे के जन्म होने पर उसका ननिहाल पक्ष और बुआ कपडे और खिलौने होली पर बच्चे को देते हैं।


तणी काटना
बीकानेर क्षेत्र में भी होली मनाने का खास अंदाज है। यहां रम्मतें, अनूठे फागणियां, फुटबाल मैच, तणी काटने और पानी डोलची का खेल होली के दिन के खास आयोजन हैं। रम्मतों में खुले मंच पर विभिन्न कथानकों और किरदारों का अभिनय होता है। रम्मतों में शामिल होता है हास्य, अभिनय, होली ठिठोली, मौजमस्ती और साथ ही एक संदेश।


कोडे वाली होली
श्रीगंगानगर में भी होली मनाने का खास अंदाज है। यहां देवर भाभी के बीच कोडे वाली होली काफी चर्चित रही है। होली पर देवर- भाभी को रंगने का प्रयास करते हैं और भाभी-देवर की पीठ पर कोडे मारती है। इस मौके पर देवर- भाभी से नेग भी मांगते हैं।

t;iqj o lEiw.kZ jktLFkku esa ;g R;kSgkj cड़s gh mRlkg o jax ds lkFk euk;k tkrk gSA gksyh ds fnu gksfydk ngu gksrk gS o mlds nwljs fnu /kqy.Mh ¼Qkx½ [ksyh tkrh gSA gksyh dk R;kSgkj Qkxqu ekg esa vkrk gS rFkk jax ls [ksyk tkrk gS] vr  bl R;kSgkj dks jaxksa dk R;kSgkj Hkh dgk tkrk gSA bl esalzh&iq#"k o cPps lewgksa esa ?kjls ckgj fudyrs gSa opax uked ok|;a= gkFk esa ysdj yksd cksfy;ksa esa Qkx ds xhr xkrs gq, pyrs gSaA bl le; os ,d nwljs dks jax yxkdj gksyh dh 'kqHkdkeuk,a nsrs gSaA bl volj ij MkafM;ksa dk ukp gksrk gSA bl u`R;esa yksx rjg&rjg ds os'k/kkj.k dj o J`axkj djds lewg esa NksVh&NksVh ydfड़;ksa ;k csrsays dj xksykdj pDdj esa u`R; djrs gSaA jktLFkku ds xkoksa ds yksx rks gksyh [ksyrs gq, ukprs xkrs viuh lq/kcq/k rd [kksnsrs gSaA czt ds fudV gksus ds dkj.k Hkjriqj o vyoj esa gksyh dk R;kSgkj fo'ks"k mRlkg o g"kksZYykl ds lkFk euk;k tkrk gSA fHkuk; esa gksyh [ksyrs le; lewg nks xqVesacatkr gS rFkk blds i'pkRos ,d nwljs ij dksड़ks ls çgkj djrs gSaA czt {ks= esa yëekj gksyh [ksyus dk çpyu gS ;g gksyh jktLFkku dh dbZ vkfnoklh leqnk; [ksyrs gSa ftls os Hkxksfj;k dgrs gSaA


No comments:

Post a Comment