Saturday, 7 September 2013

कुंवर नेतराम गौरीर

जीवन परिचय
कुंवर नेतराम गौरीर  पर पुस्तक
भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे - शेखावाटी में किसान आन्दोलन और जनजागरण के बीज गांधीजी ने सन 1921 में बोये. सन् 1921 में गांधीजी का आगमन भिवानी हुआ. इसका समाचार सेठ देवीबक्स सर्राफ को आ चुका था. सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत थे. आप शेखावाटी के वैश्यों में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकानेदारों के विरुद्ध आवाज उठाई. देवीबक्स सर्राफ ने शेखावाटी के अग्रणी किसान नेताओं को भिवानी जाने के लिए तैयार किया. भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे में आप भी प्रमुख व्यक्ति थे. [9]
नेत राम सिंह का जन्म वि.सं. 1949 भाद्रपद शुक्ल द्वितीय तदनुसार 25 सितम्बर 1892 ई. को गौरीर गाँव में हुआ. इनके पिता का नाम चौधरी जीत राम मान और माता का नाम तुलसां देवी था. इनके एक बड़े भी ताराचंद और पांच छोटे भाई यथा बुद्ध राम, मनी राम, नारायण सिंह, इन्द्र राज, हीरा लाल और दो बहनें श्योबाई और अमृता बाई उर्फ़ नानी बाई थी. [10]
कुं. नेतरामसिंह के पूर्वज

कुं. नेतरामसिंह के पूर्वजों के सम्बन्ध में ठाकुर देशराज लिखते हैं कि ये भाटी जाटों की मान गोत्र से निकले हैं. मान भाटी जाटों की एक शाखा है, ऐसा भाट-ग्रन्थ मानते हैं। इनकी वंशावली जो जाटों की लिखी हुई है, उसमें भाटियों को सूर्यवंशी लिखा है। साथ ही यह भी लिखा है कि भक्त पूरनमल के पिता शंखपति का विवाह इन्हीं लोगों में हुआ था। लगभग पन्द्रह सौ वर्ष पहले इनका एक समूह देहली के पास बलवांसा नामक स्थान में गजनी से आकर आबाद हुआ था। मानसिंह जिसके नाम पर इस वंश की प्रसिद्धि बताई जाती है, उसका पुत्र बीजलसिंह ढोसी ग्राम में आकर अवस्थित हुआ। ढोसी नारनौल के पास पहाड़ों में घिरा हुआ नगर था। इस स्थान पर अब भी दूर-दूर के यात्री आते हैं, मेला लगता है। कई मन्दिर और कुंड यहां पर उस समय के बने हुए हैं। पहले यहां गंडास गोत्र के जाटों का अधिकार था। इसने नागल की पुत्री गौरादेवी से सम्बन्ध किया और फिर ढोसी से 3 मील हटकर
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-605
गौरादेवी के नाम पर गोरीर नाम का गांव बसाया। आगे उनसे जितना भी हो सका, अपना राज्य बढ़ाया। वीजलसिंह से 20 पीढ़ी पीछे सरदार रूपरामसिंहजी हुए। उस समय इस प्रदेश पर शेखावत आ चुके थे। खेतड़ी के शेखावतों से रूपरामसिंहजी का 10, 12 वर्ष तक संघर्ष रहा, किन्तु इन्होंने अधीनता स्वीकार न की। मान लागों के अनेक दल थे और वे अनेक प्रदेशों में बसे हुए हैं। खेतड़ी के शेखावतों से रूपरामसिंह का युद्ध अब से लगभग 80-90 वर्ष पहले हुआ था, क्योंकि कुं. नेतरामसिंहजी गोरीर वालों से रूपरामसिंहजी चार पीढ़ी पहले हुए थे। उस समय सुखरामसिंहजी के पास कितना इलाका था, भाट लोगों की पोथियों से इतना पता नहीं लगता है।
मास्टर चंद्रभानसिंह गिरफ्तार

मास्टर चंद्रभानसिंह गिरफ्तार - ठिकानेदार और रावराजा ने जाट प्रजापति महायज्ञ सीकर सन 1934 के नाम पर जो एकता देखी, इससे वे अपमानित महसूस करने लगे और प्रतिशोध की आग में जलने लगे. जागीरदार किसान के नाम से ही चिढ़ने लगे. एक दिन किसान पंचायत के मंत्री देवी सिंह बोचल्या और उपमंत्री गोरु सिंह को गिरफ्तार कर कारिंदों ने अपमानित किया. लेकिन दोनों ने धैर्य का परिचय दिया. मास्टर चंद्रभान उन दिनों सीकर के निकट स्थित गाँव पलथाना में पढ़ा रहे थे. स्कूल के नाम से ठिकानेदारों को चिड़ होती थी. यह स्कूल हरीसिंह बुरड़क जन सहयोग से चला रहे थे. बिना अनुमति के स्कूल चलाने का अभियोग लगाकर रावराजा की पुलिस और कर्मचारी हथियारबंद होकर पलथाना गाँव में जा धमके. मास्टर चंद्रभान को विद्रोह भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया और हथकड़ी लगाकर ले गये. [11]
किसान नेता घरों में पहुँच कर शांति से साँस भी नहीं ले पाए थे कि सीकर खबर मिली कि मास्टर चंद्रभान सिंह को 24 घंटे के भीतर सीकर इलाका छोड़ने का आदेश दिया है और जब वह इस अवधि में नहीं गए तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. ठिकाने वाले यज्ञ में भाग लेने वाले लोगों को भांति-भांति से तंग करने लगे. मास्टर चंद्रभान सिंह यज्ञ कमेटी के सेक्रेटरी थे और पलथाना में अध्यापक थे. सीकर ठिकाने के किसानों के लिए यह चुनौती थी. मास्टर चंद्रभानसिंह को 10 फ़रवरी 1934 को गिरफ्तार करने के बाद उन पर 177 जे.पी.सी. के अधीन मुक़दमा शुरू कर दिया था. [12]
यह चर्चा जोरों से फ़ैल गयी की मास्टर चन्द्रभान को जयपुर दरबार के इशारे पर गिरफ्तार किया गया है. तत्पश्चात ठिकानेदारों ने किसानों को बेदखल करने, नई लाग-बाग़ लगाने एवं बढ़ा हुआ लगान लेने का अभियान छेड़ा. (राजेन्द्र कसवा: p. 122-23)
बधाला की ढाणी में विशाल आमसभा

पीड़ित किसानों ने बधाला की ढाणी में विशाल आमसभा आयोजित की, जिसमें हजारों व्यक्ति सम्मिलित हुए. इनमें चौधरी घासीराम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, ख्यालीराम भामरवासी, नेतराम सिंह, ताराचंद झारोड़ा, इन्द्राजसिंह घरडाना, हरीसिंह पलथाना, पन्ने सिंह बाटड, लादूराम बिजारनिया, व्यंगटेश पारिक, रूड़ा राम पालडी सहित शेखावाटी के सभी जाने-माने कार्यकर्ता आये. मंच पर बिजोलिया किसान नेता विजय सिंह पथिक, ठाकुर देशराज, चौधरी रतन सिंह, सरदार हरलाल सिंह आदि थे. छोटी सी ढाणी में पूरा शेखावाटी अंचल समा गया. सभी वक्ताओं ने सीकर रावराजा और छोटे ठिकानेदारों द्वारा फैलाये जा रहे आतंक की आलोचना की. एक प्रस्ताव पारित किया गया कि दो सौ किसान जत्थे में जयपुर पैदल यात्रा करेंगे और जयपुर दरबार को ज्ञापन पेश करेंगे. तदानुसार जयपुर कौंसिल के प्रेसिडेंट सर जॉन बीचम को किसानों ने ज्ञापन पेश किया. (राजेन्द्र कसवा: p. 123)
इस बैठक में यह तय हुआ कि जागीरदारों की ज्यादतियां रोकने के लिए संघर्ष किया जय. इस हेतु जाट पंचायतें स्थापित की जावें. किसानों के बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोले जावें. इसी उद्देश्य से 1931 में शेखावाटी किसान जाट पंचायत झुंझुनू में कायम हुई जिसका उद्देश्य किसानों की आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक उन्नति करना और किसानों की जमीन का बंदोबस्त करवा कर उनकी खतौनी पर्चे दिलवाना था. [13]
गढ़वालों की ढाणी में जलसा 1933

कुंवर नेतराम सिंह शेखावाटी की हर गतिविधि में भाग लेने लगे थे. इस समय एक छोटा सा जलसा 1933 में खंडेला वाटी की गढ़वालों की ढाणी में चौधरी लादूराम रानीगंज के सभापतित्व में हुआ. यह जलसा बड़ी धूम -धाम से मनाया गया. सभी प्रमुख व्यक्ति जिसमें नेत राम सिंह शामिल हुए थे, वहां पहुंचे और जलसा शान के साथ ख़त्म हुआ. यह खंडेला वाटी के लिए बहुत हितकर सिद्ध हुआ जिससे काफी जागृति आई.[14]
नेतराम सिंह को सजा

ताराचंद झरोड़ा को 7 फरवरी 1940 को साढ़े नौ वर्ष की सजा सुनाकर जयपुर जेल भेज दिया. चौधरी घासी राम फरार थे. क्रुद्ध पुलिस ने उनके घर का सामान कुर्क कर दिया. अंत में चौधरी घासी राम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा और नेतराम सिंह ने प्रजामंडल के अधिवेशन से पूर्व ही कोर्ट में उपस्थित हो गिरफ़्तारी दे दी. 15 नवम्बर 1940 को इन तीनों को सजा सुनाई गयी. प्रत्येक को 2 वर्ष 3 माह की कठोर कारावास की सजा सुनाई तथा सजा भुगतने जयपुर सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सजा काट रहे किसान नेताओं को राजनैतिक कैदी नहीं समझा गया बल्कि इनके साथ जयरामपेशा अपराधियों की भांति व्यवहार किया गया. घासी राम से चक्की पिसवाई जाती. गुस्से में आकर एक दिन उन्होंने चक्की का पाट ही तोड़ दिया. तब उन्हें छः माह के लिए काल कोठरी में डाल दिया. (राजेन्द्र कसवा: p. 178-79)
चनाणा गोलीकांड

चनाणा गोलीकांड - सन 1946 में झुंझुनू जिले के चनाणा गाँव में किसान सम्मलेन का आयोजन किया गया था. सम्मलेन के अध्यक्ष नरोत्तम लाल जोशी व मुख्य अतिथि पंडित टिकाराम पालीवाल थे. किसान नेता सरदार हरलाल सिंह, नेतराम सिंह, ठाकुर राम सिंह, ख्याली राम, बूंटी राम और स्वामी मिस्रानंद आदि उपस्थित थे. सम्मलेन आरंभ हुआ ही था कि घुड़सवार, ऊँटसवार व पैदल भौमिया तलवारें, बंदूकें, भाले व लाठियां लेकर आये. सीधे स्टेज पर हमला किया जिसमें टिकाराम पालीवाल के हाथ चोट आई. दोनों ओर से 15 मिनट तक लाठियां बरसती रहीं. भौमियों के बहुत से आदमी घायल होकर गिर पड़े तो उन्होने बंदूकों से गोलियां चलाई जिससे कई किसान घायल हो गए और सीथल का हनुमान सिंह जाट मारा गया. किसानों ने हथियार छीनकर जो मुकाबला किया उसमें एक भौमिया तेज सिंह तेतरागाँव मारा गया और 10 -12 भौमियां घायल हुए. सभा में भगदड़ मच गयी और दोनों तरफ से क़त्ल के मुकदमे दर्ज हुए. आगे चलकर समझौता हुआ और दोनों ओर से मुकदमे उठा लिए गए. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 42-43)
गढ़वालों की ढाणी में जलसा 1933

कुंवर नेतराम सिंह शेखावाटी की हर गतिविधि में भाग लेने लगे थे. इस समय एक छोटा सा जलसा 1933 में खंडेला वाटी की गढ़वालों की ढाणी में चौधरी लादूराम रानीगंज के सभापतित्व में हुआ. यह जलसा बड़ी धूम -धाम से मनाया गया. सभी प्रमुख व्यक्ति जिसमें नेत राम सिंह शामिल हुए थे, वहां पहुंचे और जलसा शान के साथ ख़त्म हुआ. यह खंडेला वाटी के लिए बहुत हितकर सिद्ध हुआ जिससे काफी जागृति आई.
सम्मान

कुंवर नेतराम सिंह गौरीर का जीवन परिचय देने वाली पुस्तक का अभाव था. यह कार्य पूर्ण किया है लेखक हरिनारायण शर्मा ने वर्ष 2005 में. राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर ने 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा' पुस्तक माला में अमर स्वाधीनता सेनानी कुंवर नेतराम सिंह गौरीर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है.
आपकी सेवाएँ किसानों के हितों के लिए सदैव स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएगी और शेखावाटी में आगे आने वाली पीढियां सदैव आपकी आभारी रहेंगी.

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